आओ अहं को परे रख दें
किसी ताक पर।
पिघला दें बर्फ जैसे मौन को
संवादों की गर्मी से।
थोड़ा तुम बढ़ो थोड़ा मैं
और पहुंच जाएं वहीं पर
जहां से शुरुआत की थी।
आओ, शिकवे शिकायतों को
फैंक दे किसी गमले में
डाल कर मिट्टी उन पर
बोयें एक बीज प्रेम का।।
आओ, इस रिश्ते को फिर बुनें
दोनों मिल कर।
उधड़े संबंधों में लगा डालें
पैबंद क्षमा का।
कड़वी बातों को भुला दें
किसी दुःस्वप्न सा।
देखो ,ला रही हूं मैं
अपने साथ प्रेम की सुई।
तुम भी मत भूलना
विश्वास का धागा लाना।
हम मिल के थामेंगे
धागा और सुई।
और कर देंगे
फटे रिश्तों में
प्रेम की तुरपाई।।
धीरजा शर्मा
चंडीगढ
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