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मन की सुंदरता है गायब !! गायब मुख से हुई मिठास !!
कटु की कटुता हुई चौगुनी !! खट्टे में सौ गुनी खटास !!
पंचायत में ऊँच नीच की !! बात हुईं बहुतायत में !!
वीर चतुर भी जा बैठे तब !! गम्भीरों संग आयत में !!
चिकने घड़े लुढ़कते देखे !! कायर मूरखता के दास !!
कटु की कटुता हुई चौगुनी !! खट्टे में सौ गुनी खटास !!
शीतल मन की शीतलता को !! तीखेपन का दिया निशान !!
चौतरफा धन की धम धम से !! मूढ़ बने बहरे अज्ञान !!
पण्डितजी की बुद्धिमता भी !! कंजूसों में हुई उदास !!
कटु की कटुता हुई चौगुनी !! खट्टे में सौ गुनी खटास !!
कवि समोद ‘चरौरा’
फरीदाबाद
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