आज विदेशी कर रहे तरक्की
तुम इंटरनेट पर मस्त हो।
उन्होंने फैलाया जाल मीडिया का
तुम रहते उसमें व्यस्त हो।
फेंककर टुकड़ा वाट्सेप-फेसबुक का
उन्होंने जाल बिछाया है।
तुम ना बढ़ो प्रगति पथ पर
इसलिए ये तरीका अपनाया है।
समझो उनकी राजनीति
तुम मूर्ख नहीं बन सकते यों।
छोड़कर सब संगी-साथी
फोन पर लगे रहते हो क्यों ?
रोज उड़ाते वे अफवाहें
तुम उसको ही सच मानते हो।
नहीं मानते मां-बाप की
लैपटॉप साथ ले जाते हो।
उसको समझते साथी अपना
समाज संस्थान भुला दिए।
फंसकर इसके मायाजाल में
प्रगति के रास्ते भुला दिए।
पथिक बनकर कौन तुम्हें अब
सही रास्ता दिखलाएगा ?
देखोगे सुनोगे किसका
किसका समझ में आएगा ?
गुमान सिर चढ़ बोल रहा
सहनशीलता नहीं रही ।
गुरुओं के अनमोल वचन
तुमको लगते सही नहीं ।
जो चाहे भला तुम्हारा
हथियार उनपर चलाते हो।
अगर कुछ सीखना ही नहीं
तो स्कूल किसलिए आते हो?
कमी रह गयी परवरिश में
बिन मांगे सब कुछ देते हैं।
बच्चा चाहे झूठ कहे
उसे सच मान लेते हैं।
बिना सोचे समझे जाकर स्कूल में
हुड़दंग वो मचाते हैं।
कहना-सुनना कुछ नहीं
शिक्षकों को पीटकर आते हैं।
फिर उम्मीद करते हैं बुढ़ापे में
बच्चे साथ निभाएंगे ।
बोये पेड़ बबूल के तो
आम कहां से पाएंगे ।
गर चाहते हो भला तुम इनका
संस्कार अच्छे सिखला दो ।
शिक्षक कभी बुरा नहीं चाहता
उनको तुम ये बतला दो।
श्रीमती रीनादेवी
संस्कृत प्रवक्ता
रा. व. मा. वि.
मांधना(पंचकूला)