आरक्षण

अपने-अपने मुद्दे सबके,
अपने लगाए बाज़ार।
वर्णो के सागर में ही,
डूब गया संसार।
मदारी बैठा खेल दिखाए,
डुगडुगी बजाकर सबको नचाए,
मूर्ख बन्दर ताल मिलाए,
ठुमक-ठुमक कर नाच दिखाए।
हर ओर तमाशा आरक्षण का,
हर ओर लगा दरबार।
जहाँ बन बैठा आदमी ही आदमी का दुश्मन,
वहाँ क्या करेगी व्यवस्था, क्या करेगी सरकार।
स्वार्थ के पहरेदारों ने जातिवाद के तीरों से लोकतंत्र पर किया प्रहार,
काश कोई ऐसा तीर भी आ जाये,
जो ला सके इंसानियत, मिटा दे हैवानियत,
भेद दे वर्णो की दीवार।
ये कैसा आरक्षण,
जिसने देश का ही कर लिया भक्षण।

ममता कालड़ा सेतिया
चंडीगढ़

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