खामोश  सहारे 

ढलती हुई ज़िन्दगी  के दोराहे पर जब ,
साथ हों तन्हाईयां , तो आते हैं  अश्क ।
जब खामोश  सी राहों  पे कदम  लड़खड़ाऐं ,
देने को फिर  सहारा, आते  हैं  अश्क  ।
सब साथी  छूट जाएं , न साथ हो परछाई  ,
साँसें भी  साथ  न दें,  तो  आते  हैं  अश्क  ।
ग़मों  के समंदर  में  खो जाए जब कश्ती  ,
तो  बन के फिर  साहिल , आते  हैं  अश्क  ।
जो ख़ूने दिल  के एवज़ में  मायूसियां दे ज़िन्दगी  ,
यो ऐसे  में  दिल  बहलाने,  आते  हैं अश्क  ।
अपने  हों  पराए और  ज़माना  बने दुश्मन  ,
भूल  जाए जब ख़ुदा  भी  ,तो  आते हैं  अश्क  ।
तेज़ आँधियों में  जलती इक मद्धम  सी लौ को ,
हवाओं  से  बचाने  ,आते हैं अश्क  ।
ज़िन्दगी  की बिखरी  किताब  के  पन्नों को,
चुन चुनकर समेट  लाने  को , आते हैं अश्क  ।
बन जाते हैं  ये अल्फ़ाज़  , दिल  में  समाए हुए ,
बयां करने  को इक दास्ताँ  , आते हैं अश्क  ।
काँटों  भरा सफर हो और  मंज़िल  हो जब मौत ,
तो हर कदम पे फूल  बिखराने , आते हैं अश्क  ।
कहते हैं  आँखों  के  समंदर  में  समा कर कि ,
मंज़िल  मिल जाते ही , मिट जाते हैं  अश्क  ।
ऐ काश ! इन्सां  इन अश्कों  से  ही सीख ले ,
कि किस तरह  दोस्ती  , निभाते हैं  अश्क  ।
ऐ ख़ुदा  ! इन अश्कों  की उम्र  इलाही दराज़ हो ,
हर तन्हा ज़िन्दगी  के  – साथी हैं  ये अश्क ।।

रश्मि  सिंगला
लुधियाना
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