डर


क्यूं डर लगता है
वो जो बरसात की बूँदें पड़ें
तो भाग जाते थे नहाने
नंग धड़ंग हो गलियों में
कश्तियों की रेस लगाने।
चार बूँदें पड़ जाएं तन पर
तो अब डर लगता है।
मॉनसून में घर रह जाए छाता
तो अब डर लगता है।।
“बारिश नही आकाश का अमृत है”
मां कहती थी हमारी।
“मौज ले लो”वो कहती थी
“न रहेगी तन में बीमारी”।
आज बच्चों के भीगने से
माँ बाप को डर लगता है
“नहीं रखना पाँव बाहर,
बीमार होंगे” …ऐसा डर लगता है।

धीरजा शर्मा
चंडीगढ़
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