दर्द

मेरी आँखों के आँसू
इस दिल का दर्द
इन सफ़ेद कागज़ों पर
काले अक्स बन कर उभरता चला जाता है।
फैलता चला जाता है
समंदर पर बिखरे तेल की तरह
पर कहीं पहुँचता नहीं है
किसी को छूता नहीं है
न किसी किनारे को
न किसी वीरान टापू को
न किसी जहाज को
न किसी नाव को
इधर से उधर लहरें
बहा ले जाती हैं
बेमक़सद, लक्ष्यविहीन दर्द तैरता रहता है
इस उम्मीद पर कि किसी दिन
इसे भी सहारा मिलेगा
किसी शैवाल या टहनी का,
जिस पर ये लिपट कर
चिर निद्रा में अनंत शाश्वत में ,
विलीन हो जायेगा
और मेरी इन आँखों के आँसुओं
और दिल के दर्द को
इन सफ़ेद कागज़ों पर
काले अक्स बनने से
मुक्ति मिल जायेगी।
मेरी आँखों के आँसू ,
इस दिल का दर्द
इन सफ़ेद कागज़ों पर
काले अक्स बन कर उभरता
चला जाता है…..!

कंचन अद्वैता
पंचकूला

 

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