प्रेम

 

कहते हैं, प्रेम जिन्दगी है ……..
प्रेम बन्दगी है ………
पर लगता नहीं प्रेम मुक़म्मल हो पाया किसी का यहाँ,
प्रेम करना ही है बन्दे, तो कर उस ख़ुदा से,
वही तो तेरी मंजिल-ए-जिंदगी है।
कितनी शिद्दत से तूने चाहा उसको,
पाकर भी फिर न पाया उसको,
भटकता रहा दर-ब-दर नूरे दर्श को,
तड़फता रहा दिन-रैन, रहबर-ए मिलन को।
उतनी ही इबादत जो होती उसमें,
मोहब्बत का मंजर भी क्या खूब होता।
तू दिखता उसमें, वो दिखता तुझमें,
इंसानों का मिलना है मुश्किल जहाँ में,
गर मिले ख़ुदा हर रहमत में तुझे फिर,
वही तो सच्ची बन्दगी है।

ममता कालड़ा
चंडीगढ़
[siteorigin_widget class=”SiteOrigin_Widget_Headline_Widget”][/siteorigin_widget]
[siteorigin_widget class=”categoryPosts\\Widget”][/siteorigin_widget]
Share Onain Drive