बचपन

एक बचपन ही तो है
जिसकी यादें रूला देती हैं
कभी हंसा देती हैं
स्मृतियों में बहुत सा बचपन आता है
बच्चों सी ज़िद्दी हो दिन में तारे दिखा देना
रूठ कर रूक गई तो नानी याद दिला देना
नन्हें नन्हें हाथों से पकड़
कभी गालों को सहला देना।
मां बनकर पूरी दुनिया बसा देना
न जिसमें कमी कोई पाई थी तब हमने
वो कब जागी है कब सोई
नहीं पालती थी वो सपने
याद है मुझको
कहा करती थी मां
तुम सब हो मेरे अपने।
पिता का बना रहे साया
जो कभी न दे धरा को तपने।
याद आ गया पिता का गोदी उठाना
ऊपर उछाल उछाल हवा में झुलाना
लपक कर सधे हाथों में   हृदय से लगाना
हर गलती पर समझाना
कामयाबी पर खुशी से पीठ थपथपाना।

कुंती नवल
नवी मुंबई

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