क्या ढूंढते हो पानी में
जिंदगी को भी रवानी देदो,
खुद रुक गए चट्टान पर
इसे भी तो कहानी दे दो।
गीत गुनगुना कर
अपने जीवन को
जिंदगानी दे दो।
नदियां के पानी सी
तुम भी मिटा दो
रूकावटें परेशानियां
जिंदगी को फिर नई रवानी दे दो।
क्यों ठहर गए हैं कदम तेरे
इन्हे बढ़ने की बानगी दे दो।
किनारे नदी के बैठ गई
तुम रूक कर
देखने चाल नदी की
और वो कह चली
रूक गई तो
रह जाएगा क्या
बहती रही तो
जीवन
मिल ही जाएगा
खेतों में ,खलिहानों में
अमराई में
बाग बगीचों में
गांव किनारे
करते छपाछप
बच्चों की अठखेलियों में
कहकर चुपचाप
नदी तो चल दी
राह अपनी बनाती
खोज में मंज़िल की
जीवन रूक जाता नहीं
यूं
ठहर कर चट्टान पर।
चीर कर पर्वतों को
मैं हूं निकल पड़ी
थम सकती अब नहीं
मानकर हार कभी
नदी हूं मैं बहता पानी
तुम भी सीखो कुछ
दे दो जीवन को रवानी
समझा कर तुम्हें
नदी आगे बढ़ी
सुनाकर यूं
अपनी कहानी।
कुंती नवल
नवी मुंबई
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