मन

ज़िंदगी
तूने मुझे भी
कुछ बताया होता,
तूफान उठाए थे
तो रास्ता दिखाया होता।
छोटी सी कश्ती देकर
पार तो लगाया होता।
यूं मझधार में
आज भी
बह रही हूं मैं,
नाव दी तो
पतवार भी
थमाया होता।
ऐ!मेरे मालिक
तुम से
न शिकवा न शिकायत कोई
सोचती हूं काश!
ये मन ही
न भरमाया होता।

कुंती नवल
नवीं मुंबई
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