पकड़ कर हाथ जब मेरा मां ने डोली में बिठाया था….
दुआओं भरा हाथ मेरे सिर पर टिकाया था…
देकर शगुन की सौगात कितने आशीर्वाद दिए…
लाकर चेहरे पर मुस्कान आंसू दफन कर लिए…
पलट कर आई जब घर तो सूनापन न सह पाई…
देख कर मेरी सारी चीजें दहाड़े मार कर रोई…
देकर कलेजे का टुकड़ा बदले में कुछ भी तो ना मांगा है…
हर पल करती शुक्र खुदा का न करती कोई दुख सांझा है…
अब तो दिन महीने साल दर साल गुजर गए…
मां पूछना न भूली कब आओगी क्यों हम ही भूल गए…
कब बात होगी चैन से साथ मिलकर वही दिन याद करेंगे…
पुरानी यादों के पिटारे सब एक साथ खुलेंगे…
मां से ही तो बचपन मां से ही तो मायका है…
वरना तो फीका अब हर रिश्ते का जायका है…
नीलम त्रिखा
पंचकूला
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