गीत
ये नहीं है कि जहां की धमकियों से डर गया.
बस ज़रा दूरी मैं तुझसे एहतियातन कर गया.
आज भी शामिल है तू इन धड़कनों के साज में.
गीत की तरह बसी है दर्द की आवाज़ में.
क्या कहूँ ,किससे कहूँ कि मैं तुम्हारा कौन हूँ.
बेजुबां होकर खड़ा तनहाइयों में मौन हूँ.
न कभी ये सोचना कि मन ये तुझसे भर गया.
बस ज़रा दूरी मैं…
है बहुत मुमकिन कि तुझ में नफरतें पलने लगे.
देखते ही मुझको तू इक आग में जलने लगे.
पर मेरे दिल में जली है जोत तेरे प्यार की.
फिर ये कैसी शर्त,अपनी जीत की या हार की.
क्या रहा मुझ में, तू मेरी ज़िंदगी से गर गया.
बस ज़रा दूरी मैं…
चाँद तू मेरा मगर मैं आसमां तेरा नहीं.
सच है मुझमें तू ही है पर फिर भी तू मेरा नहीं.
ज़िंदगी मजबूरियों के हाथ बेबस हो गयी.
ख्वाहिशें थक हार कर अब नींद गहरी सो गयी.
मैं कहाँ फिर मैं रहा, जब लौटकर मैं घर गया.
बस ज़रा दूरी मैं…
विकास यशकीर्ति
भिवानी हरियाणा
भिवानी हरियाणा
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