रेत के रिश्ते          

              

एहसान न ले किसी का
एहसास हो ही गया है।
जीवन के हर सफर में,
कुछ खो गया है।
रिश्तों को समेटने में
एक उम्र निकल गई
खाली सा हो गया मन,
कुछ हाथ न आया है।
इस दिल को समझाया
है कई बार
रिश्ते हैं
अब रेत की दीवार,
धोखा खा-खाकर भी
सभंलता नहीं है,
रिश्तों की जिम्मेदारी
उठाता है बार बार।
हर नया धोखा खाने
जैसे हो जाता है तैयार।
किसी को न
मेरे दर्द का
एहसास होता है,
मेरी ज़रूरत में न
कोई साथ होता है,
अकेले संघर्ष करते करते
थक गई हूं मैं
फिर खुद को खुद में ही
संभालती हूं मैं।
जैसे
दरिया में गहरे डूबती हूं
पर तैर कर पार
आ जाती हूं मैं।

कुंती नवल
नवी मुंबई

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