कहां से करें शुरू
हथेली में पड़ कर
बिगाड़ती बनाती रही तकदीर
माथे पड़ी सिलवटों में
दिखी बनकर
बुढ़ापे की तस्वीर__.
कभी चिंता बन कर उभरी
जब न सूझे कोई तदबीर__
धरती की छाती पर
बनीं सरहदों के तीर__
बड़े तरतीब से लिखी
बन गई अक्षरों की पीर__
आड़ी तिरछी कॅनवस
पर खींच कर
बनी रंगभरा नीर__
कलाकार की कलाकारी में
भावनाओं सी गंभीर__
कागज़ पर लिखकर
मन की खुल गई ज़ंजीर__
हूं कौन बस
छोटी सी लकीर_
छोटी सी लकीर____
कुंती नवल
नवी मुंबई।
[siteorigin_widget class=”TheChampSharingWidget”][/siteorigin_widget]
[siteorigin_widget class=”SiteOrigin_Widget_Headline_Widget”][/siteorigin_widget]
[siteorigin_widget class=”categoryPosts\\Widget”][/siteorigin_widget]