शब्दों के मत तीर चलाओ,
शब्दों में सुख है,
शब्दों में दुःख है,
शब्दों में घाव गंभीर
शब्दों के शब्दों में ही मरहम।
शब्दों में अग्नि की ज्वाला,
शब्दों में है शीतल हिमालय।
शब्दों में है प्राण,
शब्द निराले और रसीले
भर दें सब में जान।
शब्दों की महिमा ऐसी
भर देती है जोश,
शब्द अनूठे जब जब होते
खो जाते हैं होश।
शब्दों की चंचलता वाचाल बना दे,
शब्द संभलें तो संत बना दें।
शब्दों में प्रेम पगे ,प्रेमी बन जाते
अपनी आंखे मूंद।
शब्दों के बहते झरनें जब
मन होता सराबोर।
शब्दों के जब पत्थर मारें, दंगें हो जाते
हाहाकार चारों ओर।
शब्दों ने करी तबाही,
रिश्तों की है नींव हिलाई,
शब्दों ने ही सुलह कराईं
शब्दों ने जन्मों की प्रीत बनाईं।
मन में तोलो फिर ही बोलो,
शब्द कभी नहीं फिरते हैं।
वो ही जीता वो ही सिकन्दर,
जिसने ये रीत अपनाई।
कुंती नवल
नवी मुंबई
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