हरियाणवी ग़ज़ल

अपणी अपणी गावै बस इसा भी होणा ठीक नहीं।
बिन मलतब की बातां मैं थूक बिलोणा ठीक नहीं।श्याणे माणसां के बीच बैठकै उल्टी सीधी बात करै
अपणे रोणे रोये जा न्यूँ चाक्की झोंणा ठीक नहीं।

सुख मैं सब भाजे आवैं दुख मैं कोई कोई डट्या करै
जो दिल के ना भाव समझता उस आगै रोणा ठीक नहीं।

काम क्रोध नैं बस मैं करकै चालो तो सब पाओगे
खोणा ठीक नहीं।

के तेरा के मेरा जग मैं नहीं किसे के साथ गया
खामेखां यें बीज बिघन के आपस मैं बोणा ठीक नहीं।

ऊँच नीच का भेद मिटै तो देश तरक्की कर लेगा
जात पात की निंद्रा मैं इतना भी सोणा ठीक नहीं।

काम अक्ल तै इसे करो के सारी दुनिया याद करै
ऊँट गधे की ढ़ाल पीठ पै बौझा ढ़ोणा ठीक नहीं।

बुरे भले बख़्त सभी मैं आवैं घाट बाध थम कहियो
सरेआम इज्ज़त की धोती सी न्यूँ धोणा ठीक नहीं।

चार यार घर पै आये चा पाणी की हो सेवा ना
घरबारण के रुप मैं भी इस्सा तो चौणा ठीक नहीं।

मेहरू शर्मा प्यासा
गांव मटौर जिला कैथल
हरियाणा

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