हिन्दुस्तानी माटी को, सनातनी परिपाटी को !
फूलों से ढकना होगा,काश्मीर की घाटी को !!
फूलों से ढकना होगा,काश्मीर की घाटी को !!
ममतामयी दुशाला को, वर्णों की इस माला को !
जिन्दा रखना ही होगा, देश प्रेम की ज्वाला को !!
अम्मा के सँग चाची को, धागे वाली राखी को !
पोता पल में भूल गया, बूढ़े दादा दादी को !!
तरुणों की तरुणाई को ,पन्ना जैसी दाई को !
कोटि- कोटि में नमन करूँ, लक्ष्मण जैसे भाई को !!
विंध्या की चट्टानों को, धूल भरे मैदानों को !
गंगा यमुना खोज रहीं ,तहजीवी परिधानों को !!
भूमण्डल के दर्पण को, या फिर घर के गुलशन को !
केवल रवि के रंगों ने, रंग दिए हैं मधुबन को !!
आशा और निराशा को ,ममता की परिभाषा को !
शूल भरा मन क्या जाने,फूलों की अभिलाषा को !!
मदमाते शैतानों को, जब देखा तूफानों को !
कलम से राह दिखाई है,हमने तीर कमानों को !!
कवि समोद चरौरा
फरीदाबाद
9999859199
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