ग़ज़ल

*ग़ज़ल*
बिन रिश्वत नै आने वाले।
क्या बिजली क्या थाने वाले।हर दफ्तर का हाल यही है
लुट के आएँ जाने वाले।राजनीति में मिलते हमको
सब के सब भड़काने वाले।

नयन तुम्हारे बोल रहे हैं
मन का दर्द छुपाने वाले।

यूँ छुप छुप कर क्यों रोते हो
मुझको रोज हँसाने वाले।

जाते जाते कुछ तो कहदो
लौट के’ फिर नै आने वाले।

मर जाएँ तब समझे जाएँ
प्यासा कलम चलाने वाले।

मेहरू शर्मा प्यासा

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