नारी
दुधमुंहे बच्चे को छुड़ाकर उसके मुंह से शीशी लगाकर तुम उठ बैठी हो मुंह अंधेरे और दैनिक क्रियाओं से निवृत हो तुमने दे दिया है मुंह चूल्हे में । हां…
हमारे शहर में सरकारी छत्र छाया में अक्सर ऐसी विशिष्ट साहित्यिक संगोष्ठियाँ आयोजित होती रहती हैं जिनमें अधिकांशतः केवल साहित्यकार ही भाग लिया करते हैं। इक्का दुक्का जो गैर साहित्यकार…
ढलती हुई ज़िन्दगी के दोराहे पर जब , साथ हों तन्हाईयां , तो आते हैं अश्क । जब खामोश सी राहों पे कदम लड़खड़ाऐं , देने को फिर सहारा, आते …
....................................... हर इक ठेला भरा हुआ था मीठे मीठे आमो से पेड़ से बन्दर देख रहा था ललचाई निगाहों से । कोई हरा था कोई पीला गूदेदार, बड़ा…