आओ अहं को परे रख दें

  आओ अहं को परे रख दें किसी ताक पर। पिघला दें बर्फ जैसे मौन को संवादों की गर्मी से। थोड़ा तुम बढ़ो थोड़ा मैं और पहुंच जाएं वहीं पर…

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भगवान जी मुझे शिकायत है

भगवान जी मुझे शिकायत है आपसे क्यों बेज़ुबान पर इंसान अत्याचार करता है होकर अपने स्वार्थ के वश किसी निरीह पर वार करता है विचलित है मन मेरा देख कर…

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कहानी : जीवन झूला


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सुजान धीरे धीरे अपना छोटा सा हवाई झूला धकेलते हुए उदास मन घर की ओर लौट
रहा था।  आज फिर उसकी कोई ख़ास कमाई नहीं हुई थी। . घर से इतनी दूर इस
मेले में बड़ी आस लेकर आया था कि शायद कुछ अच्छे पैसे हाथ लग जाएँ।  लेकिन
यहाँ  भी वही हुआ।  उसकी बगल में लगे बिजली के विशाल हवाई झूले पर चढ़ने
वालों की लंबी कतारें उसका मुँह चिढ़ाती रहीं।  उसके हाथ वाले झूले पर
ज़्यादातर वीरानी छायी रही।  कभी कभी दो चार बच्चे आ जाते थे तो उन्हीं से
मिलने वाले पाँच पाँच रुपये के लिए उसे पूरा ज़ोर लगाना पड़ता था।  कई बार
तो वह उन बच्चों को झुलाना शुरू करने से पहले काफी देर तक झूला खड़ा रखता
था कि शायद उन्हें देख कर कुछ दूसरे लोग भी आएँ  पर उसकी यह आशा ऊँचे
अँधेरे गुम्बद में फड़फड़ाते पक्षी की तरह से भटकती रह जाती थी।  सुबह नौ
बजे से रात के नौ बजे तक कुल कमाई बस 200 रुपये। घर लौटने का कोई हौसला
ही नहीं था।

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यादों के समंदर

  आज यादों के समंदर में ज्वार आया, घने जंगलों से लिपट कर नैनीताल , निकल बाहर आया। बात है उन दिनों की उम्र थी कोई सोलह सत्रह  की। एन…

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आरक्षण

अपने-अपने मुद्दे सबके, अपने लगाए बाज़ार। वर्णो के सागर में ही, डूब गया संसार। मदारी बैठा खेल दिखाए, डुगडुगी बजाकर सबको नचाए, मूर्ख बन्दर ताल मिलाए, ठुमक-ठुमक कर नाच दिखाए।…

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ढलती उम्र की शाम: सूखते पत्ते

देखा मैंने उसे , ऐसे ही किसी पथ पर, न कोई राह, न कोई डगर, कभी इधर, कभी उधर, फिर रुका था चलते-चलते, शायद थक गया था। जाने किसका था…

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 “गुरुवर”

गुरुवर आ जाओ, दरस दिखला जाओ, विनती करूं मैं, विनती करूं, चहुं ओर अंधेरा, संकट ने घेरा, कुछ समझ न पाऊँ, कब होगा सवेरा, दुःख कटवा जाओ, सुख बंटवा जाओ,…

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हिन्दुस्तानी माटी

हिन्दुस्तानी माटी को, सनातनी परिपाटी को ! फूलों से ढकना होगा,काश्मीर की घाटी को !! ममतामयी दुशाला को, वर्णों की इस माला को ! जिन्दा रखना ही होगा, देश प्रेम…

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उपहार  

घने अंधेरे में एक लौ झिलमिलाने लगी थी, तुम उसे  आग का दरिया समझ बैठे। घुटती सांसों को हवा का एक झोंका दिया हमने, तुम उन हवाओं को तूफान समझ बैठे।…

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मन

ज़िंदगी तूने मुझे भी कुछ बताया होता, तूफान उठाए थे तो रास्ता दिखाया होता। छोटी सी कश्ती देकर पार तो लगाया होता। यूं मझधार में आज भी बह रही हूं…

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अधूरी आस

अधूरी-सी इक आस है, कभी दूर तो कभी पास है। बुझा न सके जिसे अमृत भी, जाने कैसी प्यास है? बहती लाखों नदियाँ यहाँ पर, नफरत की धरा को मोहब्बत…

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आज के हालात

.......... मन की सुंदरता है गायब !! गायब मुख से हुई मिठास !! कटु की कटुता हुई चौगुनी !! खट्टे  में सौ गुनी खटास !! पंचायत में ऊँच नीच की…

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