अधूरी आस

अधूरी-सी इक आस है, कभी दूर तो कभी पास है। बुझा न सके जिसे अमृत भी, जाने कैसी प्यास है? बहती लाखों नदियाँ यहाँ पर, नफरत की धरा को मोहब्बत…

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आज के हालात

.......... मन की सुंदरता है गायब !! गायब मुख से हुई मिठास !! कटु की कटुता हुई चौगुनी !! खट्टे  में सौ गुनी खटास !! पंचायत में ऊँच नीच की…

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माँ

पकड़ कर हाथ जब मेरा मां ने डोली में बिठाया था….
दुआओं भरा हाथ मेरे सिर पर टिकाया था…
देकर शगुन की सौगात                         कितने आशीर्वाद दिए…
लाकर चेहरे पर मुस्कान आंसू दफन कर लिए…
पलट कर आई जब घर तो सूनापन न सह पाई… (more…)

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दुआ 

मेरी  ज़िन्दगी के  सेहरां  को  गुलिस्तां  करने वाले  , हर  पल  चमन  तुम्हारा बहारों  से महके । जगमगाते  रहें हमेशा  तुम्हारी आशाओं  के दिए  , चांद  सितारों की  मानिंद इस …

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तू ही बतादे

कान्हा आजा ना, दरस दिखलाजा ना, तड़प रही मैं - तड़प रही, ओ कान्हा --- मैं गम की मारी, भई दर्द दीवानी, तू समझे क्यूं ना, मेरी ये लाचारी, मैं…

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वो ज्ञान प्रभाकर नहीं रहे। तरुण मुनि सागर नहीं रहे।

    वो ज्ञान प्रभाकर नहीं रहे। तरुण मुनि सागर नहीं रहे। कुछ कड़वे थे और कुछ मीठे थे। राह दिखाते बोल जरा तीखे थे। जैसे नारियल का फल होता…

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एक दोपहर

 

 

बरसों पहले भी ऐसी दोपहरें थीं
तब भी वो, भरी दोपहरी में
अमलतास के पीले फूलों में
दहकता था ।
साल दर साल गुजर गए
न जाने कौन से वक्त ने,
कैसे अपने आप को दोहराया है
आज भी वही दोपहर है
आज भी वो भरी दोपहरी में
मेरे सीने पर
किताब सा औंधा पड़ा है
मुझसे मेरी कहानी कहता
बतियाता रहता मुझसे हरदम
आँखें मूंद लेती हूँ तो
बंद पलकों में भी जागता
रहता है मुझ में
ठन्डे जल के घूँट सा
उतरता रहता, रेंगता रहता है
मेरी दहकती देह में
भरी दोपहरी के सूरज सा
कौंधता रहता है मुझ में
सुर्ख लाल गुलमोहर के फूलों में
दहकती दोपहर में भी मुस्कुराता
मुझे बुलाता रहता है
और मैं बेबस
लू के गरम थपेड़ों में
पसीने से लथपथ
पेड़ों की घनी छाँव में
उसका वजूद तलाशती फिरती हूँ ,
आज भी भरी दोपहर में
पेड़ों के सहारे आँखें मूंदे
उसका इंतज़ार करती हूँ
जब ,एक ऐसी ही दोपहर होगी
और ,वो काला मतवाला मेघ बन
मुझ पर बरस जायेगा,
और बरसों से सूखी पड़ी
इस दिल की ज़मीन को भीगा देगा
बरसों पहले भी ऐसी दोपहरें थीं
आज भी,वही दोपहर है……!

कंचन अद्वैता
पंचकूला

 

कंचन अद्वैता
पंचकूला

 

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प्रीत के अंकुर उगाएं

इस धरा पर जो तपन है , उसको हम शीतल बनाएं, प्रीत के अंकुर उगाएं !! प्यार की पतवार लेकर, आत्मिक मनुहार लेकर ! हर नयन की पालकी से, नेह…

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हरियाणवी छंद…

बसुदेव देवकी के सर्वशक्तिमान पूत सांवरे सलोने से मुरारी का जनम है। सोला कलाएँ साधी द्वापर जुग के स्वामी विद्या जाणकार योगाचारी का जनम है। पाप को मिटाणे आये पापियों…

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पिघलता कोहरा

सुबह के घने कोहरे में कुछ यादें, सर्द हवा के झोंके सी दस्तक दे रही हैं। कुछ कोहरे में जमी यादें कमरे को रोशन करने लगी हैं एक अरसे से…

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कृष्णा

  घुँघराले केश काले,  कानों के कर्णफूल, कृष्ण को निहारने की कामना कराते हैं ! काज़ल की कोठरी से कारे-कारे नैन नित, नज़रों  में न्यारी- न्यारी भावना जगाते हैं !…

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