कितने मोहक थे वो दिन,
कितने मोहक थे वो दिन,
जब मैं तुम्हारी गोद में थी।
ना दुख की चिंता ना सुख का आभास,
नन्ही बाहों में सिमटा था पूरा आकाश।
हां कितने मोहक थे वो दिन |
चौफेरे फ़ैला था ममता का उजाला,
तेरे आंचल में खिला बचपन मतवाला।
नशे में झूमती सुनती लोरी,
वात्सल्य का लगा होठों पे प्याला,
हां कितने मोहक थे वो दिन।
पर कितने वेग से खत्म हुआ सफर,
कितनी परखार, कितनी कठिन बनी जीवन डगर,
सुख, सम्पदा, शौहरत, यौवन, जीवन
पूरा का पूरा ही कोई ले ले,
मगर लौटा दे वो सुनहरे दिन।
कितने मोहक थे वो दिन,
कितने मोहक थे वो दिन,
जब मैं तुम्हारी गोद में थी।