जानें कितनी बार

इस छोटे से जीवन में
मौसम बदले
जानें कितनी बार

पर मौसम के परिवर्तन से
मन मेरा घबराता नहीं
करूं क्या ए नाथ मुझे
डरना ही तो आता नहीं

कभी कभी फूलो में
छुपे हुए थे शूल नुकिले
मेरे पैरों में चुभ चुभ कर
जख्मी मुझे बनाया बहुत

दर्द के डर से , राह बदलना
जाने क्यों मुझे आया नहीं
सुगम पथ पर पग रखना
हृदय को मेरे भाया नहीं

कभी कभी काले बादल
गरज गरज डराते थे
दामिनी भी चमक चमक कर
नसों को थर्राती थी

मगर मंजिल ने झूठा ख्वाब
मेरी आँखों तक पहुंचाया नहीं
थकना रूकना, रूक कर बैठना
सांसों को भाया ही नहीं

जानें कितनी बार

मार्ग मेरा अवरूद्ध हुआ
मेरा खुद से युद्ध हुआ
मुझको प्यारा था मेरा गौरव
फिर जहान चाहे विरूद्ध हुआ

मैं अंधेरे पथ पर टिमटिमाती शिखा
पथ को उम्मीद से रोशन बनाती शिखा
प्रेम के दीप जलाती शिखा
जानें कितनी बार….
शान से मर मिट जाती शिखा

© शिखा श्याम राणा
पंचकूला हरियाणा

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डर

क्यूं डर लगता है वो जो बरसात की बूँदें पड़ें तो भाग जाते थे नहाने नंग धड़ंग हो गलियों में कश्तियों की रेस लगाने। चार बूँदें पड़ जाएं तन पर…

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बचपन

कितने मोहक थे वो दिन,
कितने मोहक थे वो दिन,
जब मैं तुम्हारी गोद में थी।

ना दुख की चिंता ना सुख का आभास,
नन्ही बाहों में सिमटा था पूरा आकाश।
हां कितने मोहक थे वो दिन |

चौफेरे फ़ैला था ममता का उजाला,
तेरे आंचल में खिला बचपन मतवाला।

नशे में झूमती सुनती लोरी,
वात्सल्य का लगा होठों पे प्याला,
हां कितने मोहक थे वो दिन।

पर कितने वेग से खत्म हुआ सफर,
कितनी परखार, कितनी कठिन बनी जीवन डगर,

सुख, सम्पदा, शौहरत, यौवन, जीवन
पूरा का पूरा ही कोई ले ले,

मगर लौटा दे वो सुनहरे दिन।

कितने मोहक थे वो दिन,
कितने मोहक थे वो दिन,
जब मैं तुम्हारी गोद में थी।

अरुणा डोगरा शर्मा
मोहाली

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संकल्प      

‌ ‌‍‌‌ मैं नि:स्तब्ध यूं ही खड़ी थी बड़ी असमंजस की घड़ी थी। अब जीवन सफ़र पर निकल पड़ी। अब न कोई रोके मुझको अब न कोई टोके। तूफानों से…

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दर्द

मेरी आँखों के आँसू
इस दिल का दर्द
इन सफ़ेद कागज़ों पर
काले अक्स बन कर उभरता चला जाता है।
फैलता चला जाता है
समंदर पर बिखरे तेल की तरह
पर कहीं पहुँचता नहीं है
किसी को छूता नहीं है
न किसी किनारे को
न किसी वीरान टापू को
न किसी जहाज को
न किसी नाव को
इधर से उधर लहरें
बहा ले जाती हैं
बेमक़सद, लक्ष्यविहीन दर्द तैरता रहता है
इस उम्मीद पर कि किसी दिन
इसे भी सहारा मिलेगा
किसी शैवाल या टहनी का,
जिस पर ये लिपट कर
चिर निद्रा में अनंत शाश्वत में ,
विलीन हो जायेगा
और मेरी इन आँखों के आँसुओं
और दिल के दर्द को
इन सफ़ेद कागज़ों पर
काले अक्स बनने से
मुक्ति मिल जायेगी।
मेरी आँखों के आँसू ,
इस दिल का दर्द
इन सफ़ेद कागज़ों पर
काले अक्स बन कर उभरता
चला जाता है…..!

कंचन अद्वैता
पंचकूला

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आशाओं को रोशन करने

आशाओं को रोशन करने ! जुगनू  के  घर  जाना  था !! मधुमासों के सजे हुए रथ, आये, आकर   चले  गए ! फूलों  के  मेले  में केवल, मन  के आंसू  छले …

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वृक्ष

वृक्ष से सुन्दर कविता
भला और क्या होगी?
धरती के सीने पर मूक दर्शक
से खड़े ये वृक्ष ,
न किसी से शिकवा न शिकायत (more…)

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शब्द

शब्दों के मत तीर चलाओ,
शब्दों में सुख है,
शब्दों में दुःख है,
शब्दों में घाव गंभीर
शब्दों के शब्दों में ही मरहम।

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बदलते रिश्ते

कोई खास,कुछ भी नहीं रहता
बदल जाते तमाम समीकरण
एक पल में
वो जन्मों के वादे
ढह जाते ,एक पल में
रिश्ते……एक पल में कुछ यूँ बदल जाया करते हैं ।
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हवा


हवाओं ने मेरे दिल से कहा,
मैं चली आई हूं चुपचाप
टकराकर  पर्वतों से अभी

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