खामोश सहारे
बरगद के पेड़ अक्सर मुझको है बुलाते हरे भरे लहराते खेत मुझको है लुभाते में शहर बसु पर गांव मुझे बुला रहा प्रेम प्यार की मीठी बातें याद दिला कर…
हमारे शहर में सरकारी छत्र छाया में अक्सर ऐसी विशिष्ट साहित्यिक संगोष्ठियाँ आयोजित होती रहती हैं जिनमें अधिकांशतः केवल साहित्यकार ही भाग लिया करते हैं। इक्का दुक्का जो गैर साहित्यकार…