देव भूमि शिव भूमि पहाड़ों की


हिमाचल को देव भूमि, शिव भूमि और पहाड़ों की रानी कहा जाता है । हिमाचल के अलग अलग क्षेत्रों में वहां की मान्यताओं के अनुसार देवी देवताओं के भव्य मंदिरों का निर्माण किया गया है । हिमाचल में लोग दूर दूर से घूमने आते है क्योकि यहां के मंदिर, त्यौहार ,मेले और पर्यटक स्थल बहुत ज्यादा लोकप्रिय है । हिमाचल की राजधानी शिमला तो यहां की शान में चार चांद लगा देती है । शिमला को हिल स्टेशन की रानी कहा जाता है । आज भी यहां की प्राकृतिक सुंदरता ,ऐतिहासिक कलाकृतियों ( शैली ),यहां के गायन- नृत्य ,वेषभूषा और प्राचीन मंदिरों को देख कर लोग बहुत प्रभावित होते है । और हो भी क्यो न हर क्षेत्र के रीति रिवाज ,परंपरा और आपसी मेल जोल ही तो यहां की असली धरोहर है । हमारे बजुर्गो द्वारा बनाई गई परंपराओं के पीछे कुछ न कुछ आधार होता था । आजतक जिसके परिणाम धार्मिक ,आर्थिक समाजिक और वैज्ञानिक दृष्टि से सुखदायक रहे है । जिला शिमला के लगभग 2900 गांव में आज भी परंपरागत तरीके से मेले , जातर ,जागरा और कई त्यौहार का आयोजन किया जाता है । और विरासत में मिली इस धरोहर के कारण ही शिमला को लोग दुनिया भर में जानते है ।

शिमला के पर्यटक स्थल – वैसे तो हर जगह अपनी एक अनूठी सुंदरता लिए हुए है, फिर भी कुछ ऐसे स्थान है जो पर्यट्कों को अपने पास खींच के लाते है । शिमला आज एक शहर बन चुका है, यहां का रिज मैदान, एडवांस स्टडी, चौड़ा मैदान, समर हिल्ल, जाखू मंदिर, शिमला के माल रोड , स्केंडल पॉइंट जैसे स्थल देखने लायक है । कुफरी, नालदेहरा, तत्तापानी, नारकंडा, गिरीगंगा , कुपड , हाटकोटी , चन्द्र नाहन और चांशल जैसी बहुत सी जगह ऐसी है जो कि सैलानियों के लिए देखने योग्य है । पहाड़ो की खूबसूरती का असली आनंद तो केवल इन्ही जगहों पर मिल सकता है ।

शिमला के मंदिर – जाखू मन्दिर, तारा देवी मंदिर ,संकट मोचन , हाटू मंदिर , भीमा काली मंदिर ,हाटकोटी मंदिर इन सब मंदिरों के अलावा भी अलग अलग क्षेत्र में वहां की मान्यताओ के अनुसार सैंकड़ो देवी देवताओं के मंदिर बने हुए है । और इन सभी मंदिरों की देख रेख ,पूजा पाठ , और सफाई व सुधार ( नवनिर्माण ) के कार्य हेतु मंदिर कमेटी बनाई जाती है परन्तु स्थानीय लोग की देव शक्ति में आस्था होने के कारण सभी मन्दिर के कार्य को में बढ़ चढ़ कर भाग लेते है । ये सब कार्य अनेकता में एकता का प्रदर्शन करती है ।

शिमला के मेले – यहां पर मनाए जाने वाले मेलो की अगर बात करे तो उन्हें मुख्य रूप से 2 तरह से बांटा जा सकता है । 1 व्यवसाईक मेले, और दूसरे देव लोक संस्कृति से जुड़े मेंले और त्योहार ।
समर फेस्टिवल ( रिज मैदान ) , भोज फेयर (रोहड़ू ) ,भरारा मेला (कुमारसन ) , लवी मेला (रामपुर ),महासू जातर(कोटखाई ) ,रोहड़ू मेला इन् सब मेलो के साथ साथ क्यारी में 5 देवताओं का रिहाली मेला ( कोटखाई ) ,रामपुरी मेला (जुबल ) , शवाल मेला (कोटखाई ), फाग मेला रामपूर, और जुबल के लगभग सभी गांव में मनाया जाने वाला महासू देवता का जागरा यहां की संस्कृति ,रहन सहन ,खान – पान , कला प्रर्दशन , आपसी सदभावना और आर्थिक व सामाजिक परिस्थितियों को दर्शाती है ।

त्यौहार और गांव का खान पान – वेसे तो यहाँ के दाल चावल , सिड्डू – घी , या बाबरू बहुत मशहूर है पर यहां के इंडरे , धिन्दडे , लौटे घी ,और बड़े और अन्य बहुत से पकवान भी बहुत ही स्वादिष्ट होते है । त्यौहार को मनाने का यहां अलग ही आनंद है खास त्यौहार पर आज भी पुराने रीति रिवाजों के अनुसार ही अनेकों तरह के पकवान बनाये जाते है । आज कुछ लोग पहाड़ी भोजन को अपना व्यवसाय भी बना रहे है ।

वेशभूषा – सम्मान और सादगी को दर्शाती है जिला शिमला के गांव की वेशभूषा ,औरत के सिर पर डाटू और पुरषों के सिर पर टोपी सिर्फ एक शौक नही बल्कि ताज समझा जाता है जिम्मेदारी उठाने के लिए ,सम्मान समझा जाता है आशीर्वाद देने के लिए । औरतों का सलवार कमीज के बाहर सदरी और गाची पहनना और पुरषों का कुरते पैजामा के साथ जैकिट पहनना सादगी और मर्यादा का प्रतीक माना जाता है ।

शान पहाड़ो की – पहाड़ो की शान ही पहाड़ी संस्कृति को बढ़ावा देने में है न कि उसे दरकिनार करने में । आज हमे आवश्यकता है अपने रीति रिवाज , प्राकृतिक सौंदर्य ,और ऐतिहासिक जानकारी को संजोय रखने की ताकि हम नई पीढ़ी के लोगो को अपने संस्कारो से जोड़कर रख सके । हमारा इतिहास हमे बताता है कि संघर्ष क्या होता है ,सदभावना क्या होता है ,सादगी, मर्यादा या आनंद क्या होता है । इसी तरह आज युवा पीढ़ी को भी समझाने और दिखाने की आवश्यकता है कि हम अपनी संस्कृति को क्यो अपनी शान मानते है । हमारी मान्यतायें हमारी कमजोरी या अंधविश्वास नही बल्कि हमारे लिए वो धरोहर है जो पूरी दुनिया मे हमारी एक पहचान बनाती है ।

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