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हिंदी पर है गर्व हमें,
हिंदी हमारा अभिमान है।
चौदह सितंबर को संविधान में,
मिला इसे ये सम्मान है।-(2)
हिंदी का है ऐसा अपनापन ,
कि पराए भी अपने हो जाते हैं।
सुनकर इसके बोल रसीले,
वो सपनों में खो जाते हैं।-(2)
मां-सा दुलार दिया मैंने,
तुम परायों सा व्यवहार करते क्यों?
नहीं दोष मेरे शब्दकोष में,
फिर विदेशी भाषा बोलते हो क्यों?-(2)
पढ़ो ध्यान से अगर तुम मुझको,
मुझमें नहीं कोई दोष है।
देख बर्ताव तुम्हारा ऐसा ,
भरा मेरे मन में रोष है।-(2)
जागो तुम सन्निपात निद्रा से,
बेखबर होकर सोते हो क्यों ?
अनुकरण किया पाश्चात्य सभ्यता का,
अब सिर पकड़ कर रोते हो क्यों ? -(2)
ना छोड़ो तुम यूं दामन मेरा,
मैं अपने शब्दकोश को बढ़ाऊंगी।
मेरे होते अंग्रेजी आए,
मैं जीते जी मर जाऊंगी।- (2)
मेरी है यही विनती तुमसे,
मुझे बोलने में ना शर्म करो।
कौन-सी भाषा तुम्हारे लिए अच्छी,
तुम स्वयं ही इसका मनन करो। -(2)
नहीं चाहती मैं भार बनना ,
अब स्वयं तुम यह निर्णय ले लो।
छोड़ दो मुझे बेदर्दी बनकर,
या तन-मन-धन से अपना लो। -(2)
नहीं चाहती मैं अहित तुम्हारा,
तुम कब इसे पहचानोगे ?
साया बनकर साथ मैं दूंगी,
इस बात को कब मानोगे ? -(2)
नहीं छोड़ेंगे तुम्हें हम ऐसे ,
आज शपथ ये लेते हैं ।
विश्वास करो हमारी मातेः,
हम तुम्हें वचन ये देते हैं। -(2)
गर्व है हमें तुम पर ही,
अभिमान हमारा तुम ही हो।
कहेंगे-सुनेंगे हिंदी ही हम,
पहचान हमारी तुम ही हो। -(2)
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श्रीमती रीना देवी
संस्कृत प्रवक्ता
रा. व. म. वि.
मांधना (पंचकूला)।